Description |
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Note |
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Summary |
मुझ अकिंचन के पहले ग़ज़ल-संग्रह 'बोलती रोशनाई' को आप सम्मानित पाठकगणों द्वारा अत्यधिक सराहा गया और भरपूर समीक्षायें लिखी गईं जो मेरे लिये किसी पुरस्कार से कम नहीं हैं... अभिभूत हूँ। आपके इसी प्यार दुलार से मेरे अल़्फा़ज उड़ान भरते रहे, br>चाँद-सितारों से होते हुये वो दूसरे अदृश्य जहाँ को देखने की कोशिश में हर क्षण तसव्वुर के दर पर सज़दा करते रहे। आ़िखर में हमारी ख़ामोशी इबादत रंग लायी और हमें ऐसे अनदेखे दृश्य दिखाई पड़ने लगे जो पहले कभी कल्पना में नहीं थे; अब वह पूरी कायनात ज़रा-ज़रा मेरे सामने आती जा रही है। इन्द्रधुनष के सात रंगों में मैं पहले ही डूबी थी, अब तो अनगिनत रंग वादियों में बिखरे पड़े हैं... जिधर निगाह जाती है उधर ही बँध जाती हूँ। वाह री ग़ज़ल तूने कैसा जादू किया; एक भोले-भाले मन पर ऐसा कब्जा कर लिया जो क़यामत के बाद भी तुझ में ही डूबा रहेगा। तुमने मेरी ऩजरों में अपनी कई ऩजरें गड़ा दीं और अब मुझे तुम्हारे सिवा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है क्या देखूँ, कौन-सी रोशनी से आँखों को चकाचौंध कर दिया। br>तेरे इतने रूप हैं। मैं जिसे भी देखती हूँ उसी में खो जाती हूँ बे़खुदी का आलम यह है कि 'मैं कौन' यह भी याद नहीं। अपने घर का पता भूल गई, br>तेरी गली में ही ठिकाना कर लिया। लोग पागल, दीवानी समझकर पत्थर बरसायेंगे तो यह गुनाह br>तेरे सर जायेगा... मैं तो मदहोश हूँ, सूली चढ़ने का भी एहसास नहीं होगा।. |
System Details |
Requires OverDrive Read (file size: N/A KB) or Adobe Digital Editions (file size: 724 KB) or Amazon Kindle (file size: N/A KB). |
Subject |
Fiction. |
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Poetry. |
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Hindi language materials.
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Genre |
Electronic books.
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Hindi language materials.
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